मेरा मन

एक बात मेरे साथ कहो,                                          
हर पल रहने लगी है क्यूँ,
फुर्सत के चंद लम्हों को,
देखो है तरसे मेरा मन || 
रहा अनाड़ी सा पागल,
ना जाने कितनी सदियों से,
बेकार की सारी ख्वाहिश में,
उलझा है अब भी मेरा मन ||
वो चीज़ है क्या जो है पाना,
पर सच सबका आना जाना,
मीलों का रास्ता गुज़र चुका,
क्यों थका नहीं ये मेरा मन ||
जीतना चाहता था सब कुछ,
खुद को ही हर पल खोया,
हाथ ना कुछ आया रोया,
फिर भी दौड़े है मेरा मन ||

One thought on “मेरा मन

Add yours

Leave a reply to poet Cancel reply

Blog at WordPress.com.

Up ↑