क्या नाम दूँ भला उस खबर की,
जहाँ है जली वो गली उस शहर की ।
दोनों ओर थी मौजूद वो लपटें,
किसी को नहीं थी फिकर मेरे घर की ।
हँसता रहा दूर वो पड़ोसी,
भटकी आवाजें मेरी दर दर की ।
पिटता रहा मैं दरवाज़ा हर पल,
वो चीखें मेरी कहा कब असर की ।
जलता रहा अकेला ना मैं,
मेरे साथ इंसानियत भी कबर की ।
क्या नाम दूँ भला उस खबर की…
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